मनाली : हिमालय की पीर पंजाल पर्वतमाला के ठंडे, ऊबड़-खाबड़ और चट्टानी पहाड़ियों से कचरे का निस्तारण एक कठिन कार्य बनता जा रहा है. यही पीर पंचाल पर्वतमाला उत्तर भारत की प्रमुख नदी ब्यास और इसकी सहायक नदियों का उद्गम स्थली है. आलू के चिप्स के पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें और बियर कैन जैसी प्लास्टिक की चीजें रोहतंग पास के अत्यधिक नाजुक वातावरण को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं. पर्यटक शहर से दो घंटे की दूरी पर स्थित रोहतांग दर्रा के वातावरण पर प्लास्टिक प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है.
दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं घर
दर्रा का पूरा क्षेत्र, जहां ज्यादातर लोग 13,050 फीट की ऊंचाई पर यहां से दिखने वाले शानदार नजारों का आनंद लेने आते हैं, लगभग मानव निवास से वंचित है. भारी बर्फबारी के दौरान यह इलाका हर साल देश के बाकी हिस्सों से पांच महीने से अधिक समय के लिए कट जाता है.
नदी-नालों में बहने लगा है पर्यटकों द्वारा फेंका गया कचरा
नई दिल्ली से आईं एक पर्यटक रौनक बाजवा ने कहा, "यहां बहने वाली छोटी-छोटी नहरों और नालों में प्लास्टि की बोतलों, डिब्बों और पैकटों को बहते हुए देखना चौंकाने वाला है. उन्होंने कहा, "स्थानीय प्रशासन इन नॉन-बायोडिग्रेडेबल (विघटित न होने वाले) वस्तुओं को ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में लाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रहा है."
उनके दोस्त दिलवार खान जानना चाहते थे कि क्यों सरकार हिमालय को कूड़े-करकट से मुक्त नहीं कर रही है. उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि रोहतांग पहाड़ियां तेजी से दुनिया की सबसे ज्यादा कचरा फेंके जाने का स्थान बनती जा रही हैं. यहां जगह-जगह छोड़े गए कपड़े, खाने के पैकेट और बियर कैन और प्लास्टिक की बोतलों के ढेर देखे जा सकते हैं."
हर साल 11 लाख पर्यटक आते हैं रोहतांग दर्रा
सुरम्य रोहतंग दर्रा घरेलू और विदेशी पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है. राज्य के पर्यटन विभाग के अनुसार, मनाली के आसपास के पर्यटक स्थलों में सालाना 11 लाख पर्यटक आते हैं और पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए आय का मुख्य स्रोत है. मनाली और रोहतांग दर्रे के बीच पड़ने वाले माढ़ी में खाने का सामान बेचने वाले दुकानदार लालचंद थाकुर ने कहा, "साल में एक बार पहाड़ियों की सफाई करना समाधान नहीं है. स्थानीय प्रशासन को अपशिष्ट प्रबंधन का स्थायी तरीका निकालना चाहिए."
उन्होंने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा रोहतंग दर्रे में पर्यटक वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के साथ पर्यटकों का प्रवाह काफी कम हो गया है. केवल 1,200 टैक्सियां और निजी वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति है जिसमें 800 पेट्रोल और बाकी डीजल वाहन शामिल हैं. इन्हें रोहतांग दर्रे की यात्रा के लिए ऑनलाइन अनुमति मिलती है.
Source:-ZEENEWS
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दूर-दूर तक नजर नहीं आते हैं घर
दर्रा का पूरा क्षेत्र, जहां ज्यादातर लोग 13,050 फीट की ऊंचाई पर यहां से दिखने वाले शानदार नजारों का आनंद लेने आते हैं, लगभग मानव निवास से वंचित है. भारी बर्फबारी के दौरान यह इलाका हर साल देश के बाकी हिस्सों से पांच महीने से अधिक समय के लिए कट जाता है.
नदी-नालों में बहने लगा है पर्यटकों द्वारा फेंका गया कचरा
नई दिल्ली से आईं एक पर्यटक रौनक बाजवा ने कहा, "यहां बहने वाली छोटी-छोटी नहरों और नालों में प्लास्टि की बोतलों, डिब्बों और पैकटों को बहते हुए देखना चौंकाने वाला है. उन्होंने कहा, "स्थानीय प्रशासन इन नॉन-बायोडिग्रेडेबल (विघटित न होने वाले) वस्तुओं को ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में लाने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रहा है."
उनके दोस्त दिलवार खान जानना चाहते थे कि क्यों सरकार हिमालय को कूड़े-करकट से मुक्त नहीं कर रही है. उन्होंने कहा, "ऐसा लगता है कि रोहतांग पहाड़ियां तेजी से दुनिया की सबसे ज्यादा कचरा फेंके जाने का स्थान बनती जा रही हैं. यहां जगह-जगह छोड़े गए कपड़े, खाने के पैकेट और बियर कैन और प्लास्टिक की बोतलों के ढेर देखे जा सकते हैं."
हर साल 11 लाख पर्यटक आते हैं रोहतांग दर्रा
सुरम्य रोहतंग दर्रा घरेलू और विदेशी पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है. राज्य के पर्यटन विभाग के अनुसार, मनाली के आसपास के पर्यटक स्थलों में सालाना 11 लाख पर्यटक आते हैं और पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए आय का मुख्य स्रोत है. मनाली और रोहतांग दर्रे के बीच पड़ने वाले माढ़ी में खाने का सामान बेचने वाले दुकानदार लालचंद थाकुर ने कहा, "साल में एक बार पहाड़ियों की सफाई करना समाधान नहीं है. स्थानीय प्रशासन को अपशिष्ट प्रबंधन का स्थायी तरीका निकालना चाहिए."
उन्होंने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) द्वारा रोहतंग दर्रे में पर्यटक वाहनों के प्रवेश को प्रतिबंधित करने के साथ पर्यटकों का प्रवाह काफी कम हो गया है. केवल 1,200 टैक्सियां और निजी वाहनों को ही प्रवेश की अनुमति है जिसमें 800 पेट्रोल और बाकी डीजल वाहन शामिल हैं. इन्हें रोहतांग दर्रे की यात्रा के लिए ऑनलाइन अनुमति मिलती है.
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